रविवार, 20 जनवरी 2013

मधुमेह


युर्वेद एक ऐसी भारतीय संपदा है, जिसने युगों युगों तक हम लोगो को अ च्छा जीवन दिया है । आज भी हम ऐसे अनेक बुजुर्ग देखते हैं कि जिनका आरोग्य, क्षमता, शारीरिक शक्ति आज की युवा पीढी से बेहतर है। सोचने जैसी बात है कि आज की पीढी इतनी दुर्बल क्यों हो गयी? हमारी जीवनशक्ति और हमारी ऊर्जा का ह्रास क्यों हुआ है? क्यों  की हमारी आज की जीवन शैली इतनी ख़राब हो चुकी है की हम शरीर के प्रति इतने लापरवाह हो चुके है, सही मायने में आज हम इतना व्यस्त जीवन जीते है की हमारे पास पाने शरीर के लिए समय ही नहीं है, हां जब ये किसी बीमारी के रूप में सामने आता है तब जाकर हमे ध्यान आता है लेकिन तब तक रोग हमे अपनी गिरफ्त में ले चूका होता है।

 आज हम एक ऐसी ही बीमारी के बारे में जानकारी दे रहे है, मधुमेह जो आज की एक बड़ी समस्या है और लगभग 45% से अधिक व्यक्ति इससे पीड़ित है। आज तक आधुनिक शास्त्र में मधुमेह ठीक करने की दवा नहीं निकली है। बल्कि मधुमेह के रोगियों को सिर्फ मधुमेह को नियंत्रण में रखने की दवा दी जाती है, यह दीर्घकालीन रोग एक धीमी मौत की तरह रोगी के गुर्दों को नष्ट कर देता है साथ ही ह्रदय रोग, कोमा  तथा गैंग्रीन जैसे घटक रोगो का भी मुख्या कारण यही रोग है ।  

         मधुमेह की शुरुआत होने पर डॉक्टर मरीज को आधी गोली शुरू की जाती है। थोडे दिनों के बाद एक पूरी गोली लेने को कहा जाता है। बाद में कुछ दिनों के बाद सुबह-शाम गोली शुरू की जाती है। 4-5 सालों के बाद मधुमेह की गोली के साथ रक्तचाप की गोली की आवश्यकता महसूस होती है। और 4-5 सालों के बाद इन्सुलिन शुरू करना पडता है। दिन-ब-दिन इन्सुलिन की मात्रा बढती जाती है। और कुछ दिनों में दिल का दौरा आता है और मरीज को बायपास शल्य क्रिया  की सलाह दी जाती है। हर एक मधुमेह के रोगी की तकलीफों का यह क्रम निश्चित है। तो क्या यह मधुमेह का सही इलाज है?

यदि आपको मधुमेह का सही इलाज करना है, तो पूरी दुनिया में आज आयुर्वेद के अलावा और कोई पर्याय नहीं है। आधुनिक शास्त्र के डॉ. यह भी बताते हैं कि एक बार मधुमेह की तकलीफ शुरू होने पर बची हुई पूरी जिंदगी मधुमेह की दवायें लेनी पडती है। पर यह गलत है। मैं मेरे अनुभवों से कह सकता हूँ कि 50-55 प्रतिशत रोगी आयुर्वेदिक उपचार से ठीक होते हैं।

मधुमेह के कुछ घरेलु तथा आसान  उपचार :-
  •  रामबाण औषधि है शलजम मधुमेह के रोगी को तरोई, लौकी, परवल, पालक, पपीता आदि का प्रयोग ज्यादा करना चाहिए। शलजम के    प्रयोग से भी रक्त में स्थित शर्करा की मात्रा कम होने लगती है। अतः शलजम की सब्जी, पराठे, सलाद आदि चीजें स्वाद बदल-बदलकर ले सकते हैं।
  • मधुमेह के उपचार में जामुन एक पारंपरिक औषधि है। जामुन को मधुमेह के रोगी का ही फल कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि इसकी गुठली, छाल, रस और गूदा सभी मधुमेह में बेहद फायदेमंद हैं। मौसम के अनुरूप जामुन का सेवन औषधि के रूप में खूब करना चाहिए। जामुन की गुठली संभालकर एकत्रित कर लें। इसके बीजों जाम्बोलिन नामक तत्व पाया जाता है, जो स्टार्च को शर्करा में बदलने से रोकता है। गुठली का बारीक चूर्ण बनाकर रख लेना चाहिए। दिन में दो-तीन बार, तीन ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से मूत्र में शुगर की मात्रा कम होती है।
  • प्राचीन काल से करेले को मधुमेह की औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसका कड़वा रस शुगर की मात्रा कम करता है। मधुमेह के रोगी को इसका रस रोज पीना चाहिए। इससे आश्चर्यजनक लाभ मिलता है। अभी-अभी नए शोधों के अनुसार उबले करेले का पानी, मधुमेह को शीघ्र स्थाई रूप से समाप्त करने की क्षमता रखता है।
  • मधुमेह के उपचार के लिए मैथीदाने के प्रयोग का भी बहुत चर्चा है। दवा कंपनियाँ मैथी के पावडर को बाजार तक ले आई हैं। इससे पुराना मधुमेह भी ठीक हो जाता है। मैथीदानों का चूर्ण बनाकर रख लीजिए। नित्य प्रातः खाली पेट दो टी-स्पून चूर्ण पानी के साथ निगल लीजिए। कुछ दिनों में आप इसकी अद्भुत क्षमता देखकर चकित रह जाएँगे।
  • गेहूँ के पौधों में रोगनाशक गुण विद्यमान हैं। गेहूँ के छोटे-छोटे पौधों का रस असाध्य बीमारियों को भी जड़ से मिटा डालता है। इसका रस मनुष्य के रक्त से चालीस फीसदी मेल खाता है। इसे ग्रीन ब्लड के नाम से पुकारा जाता है। जवारे का ताजा रस निकालकर आधा कप रोगी को तत्काल पिला दीजिए। रोज सुबह-शाम इसका सेवन आधा कप की मात्रा में करें।
अन्य उपचार
                               नियमित रूप से दो चम्मच नीम का रस, केले के पत्ते का रस चार चम्मच सुबह-शाम लेना चाहिए। आँवले का रस चार चम्मच, गुडमार की पत्ती का काढ़ा सुबह-शाम लेना भी मधुमेह नियंत्रण के लिए रामबाण है।

शुगर फ्री से सावधान रहे 
                                             चॉकलेट, मिठाई, आईसक्रीम व सॉफ्ट ड्रिंक जैसी चीजों पर 'शुगर फ्री' लिखा देखकर गुमराह न हों, क्योंकि इनका लगातार इस्तेमाल न सिर्फ मधुमेह के स्तर व मोटापे की समस्या को बढ़ा सकता है, बल्कि सिरदर्द, पेट दर्द, अनिद्रा व चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि शुगर फ्री के नाम पर धड़ल्ले से परोसी जा रही इन चीजों में सिर्फ चीनी के इस्तेमाल से परहेज किया जाता है, दूध, खोया, घी जैसे फैट व कैलोरी के अन्य कंटेंट वही होते हैं, जो आम उत्पादों में इस्तेमाल किए जाते हैं। ऐसे में 'शुगर फ्री है, तो नुकसान नहीं करेगा' इस भ्रम में मधुमेह ग्रस्त लोग इन चीजों का मुक्त रूप से इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं, जो कि काफी घातक साबित होता है। उल्लेखनीय है कि चॉकलेट, आईसक्रीम, मिठाई, कोल्ड ड्रिंक जैसी जिन चीजों से मधुमेह रोगियों को परहेज करने के लिए कहा जाता है, कंपनियां उनके शुगर फ्री उत्पाद बाजार में लेकर आ जाते हैं, जिनका दावा होता है कि इनके इस्तेमाल से मधुमेह रोगियों को कोई समस्या नहीं होगी। आजकल शादी-विवाह व जन्मदिन आदि की पार्टियों में भी शुगर फ्री उत्पादों को परोसना फैशन ट्रेंड बन गया है और मधुमेह पीड़ित लोग भी बेफिक्र होकर इनका इस्तेमाल करते हैं। दिल्ली डायबिटिक रिसर्च सेंटर की ओर से किए गए अध्ययन में पाया गया कि शुगर फ्री उत्पादों का इस्तेमाल करने वाले लोगों के मुंह का स्वाद खराब रहने, माइग्रेन, पेट संबंधी दिक्कतें, चिड़चिड़ापन व इनसोमनिया जैसी समस्याएं आम होती हैं।
 

समझदारी इसी में है की अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहें, नियमित जीवन जिये  और स्वस्थ रहें l 




शनिवार, 19 जनवरी 2013

Ayurveda V/s Latest Medical Science


चरक का कहना है कि कुछ भी ऐसा नहीं है जो 'औषधि' न हो। आयुर्वेद का मत है कि किसी औषधि का प्रभाव उसके किसी एक घटक के अकेले के प्रभाव से प्रायः भिन्न होता है। औषधियों के कार्य और प्रभाव को जानने के लिये उनके रस (taste), गुण (properties), वीर्य (biological properties) और विपाक (attributes of drug assimilation) का ज्ञान अति आवश्यक है।
    आयुर्वेद में 600 से भी अधिक औषधीय पादपों को औषध के रूप में उपयोग में लाया जाता है। इन्हें अकेले या दूसरों साथ मिलाकर रोगों से मुक्ति पाया जाता है। औषधीय पादप अलग-अलग तरह के कृषि-जलवायीय क्षेत्रों (जंगल, अनूप, साधारण देश) में पैदा होते हैं। वर्तमान समय में औषधीय पादपों को 'प्राकृतिक औषध' के रूप में प्रयोग करने का चलन बढ़ा है। इस कारण इस विषय का महत्व और भी बढ़ गया है।  जो कुछ नैसर्गिक है वह मनुष्य की समझ के लिये चमत्कार ही है। पूरे बगीचे के सब पौधों को एक ही खाद देने के बावजूद एक पौधे पर लाल फूल आते है, तो दूसरे पर सफेद। क्या यह चमत्कार नहीं है? गंगा नदी से करोडों साल पानी बह रहा है, क्या यह चमत्कार नहीं है? निसर्ग की तरह अपना शरीर भी बहुत बडा चमत्कार है। अतः शरीर में असंतुलन हो जाय तो गया शरीर का नैसर्गिक भाव संतुलन में लाना सिर्फ आयुर्वेद की मदद से ही संभव है। आजकल शरीर की चयापचय क्रिया में बदलाव होकर अनेक प्रकार के रोग हो रहे हैं। मतलब शरीर का नैसर्गिक भाव बदल रहा है। स्वाभाविक ही है, कि इन बिगडे हुये भावों को सुधारने के लिये दवायें केवल आयुर्वेद में ही हैं। 
         आयुर्वेद छोडकर अन्य किसी भी पैथी में यकृत की बीमारी के लिये कोई दवा नहीं है। यकृत के लिये सबसे प्रभावी इलाज है "गोमूत्र'। मैंने लिवर सिरोसिस (चाहे मद्यपान के कारण हो या अति जागरण से पित्त बढने के कारण हो) के कई रोगियों का इलाज किया है। यकृत के इन इलाज़ों में 60 प्रतिशत श्रेय गोमूत्र को होता है।

क्या किडनी फेल्युअर के इलाज के लिये आपको कोई दवा मालूम है? किडनी का कार्य बंद होकर रोगी को डायालिसिस पर रखना रोग की अंतिम अवस्था है। लेकिन सही रूप में देखा जाये तो हममें से कितने लोगों की किडनी ठीक तरह से काम कर रही है? पर यह सत्य आपको कोई बताता नहीं है, क्योंकि उनके पास किडनी का कार्य सुधारने के लिये कोई इलाज नहीं है। किडनी का कार्य बंद होने के बाद डायालिसीस करना या पूरी किडनी बदलना यही इलाज आधुनिक शास्त्र में उपलब्ध हैं। पर मैं अभिमान से कह सकता हूँ कि आयुर्वेद में किडनी की कार्यक्षमता बढाने के उपाय हैं।

इसी प्रकार मसक्युलर डिस्ट्रोफी, ब्रेन ट्यूमर, मल्टिपल स्क्लेरॉसिस आदि रोगों के इलाज के लिये आधुनिक शास्त्र में कोई दवा उपलब्ध नहीं है। दिमाग की गाँठ (ट्यूमर) निकालने की शस्त्रक्रिया में केवल 40-50 प्रतिशत यश मिल सकता है। मेरे पास ऐसे भी लोग आते हैं कि दिमाग की गाँठ निकालने के बाद उनका आँख से दिखना बंद हो गया, कान से सुनना बंद हो गया या मलमूत्र विसर्जन पर नियंत्रण नहीं रहा। शरीर को अपने आप ठीक करने की जो क्षमता होती है उसके कम होने पर या बिगडने से पर आधुनिक शास्त्र में कोई दवा उपलब्ध नहीं है। जीवाणुओं के संक्रमण से होने वाले रोगों पर आधुनिक शास्त्र में दवायें उपलब्ध हैं। मगर ये दवायें रोग को दबाकर रखती हैं, न कि उनका सही इलाज करती हैं। अंततः इनका विपरीत परिणाम हो सकता है।